Saturday 21 January 2017

कैसे करें वैकल्पिक विषय- हिन्दी साहित्य की तैयारी (Optional Subject- Hindi Literature for UPSC CSE)

कैसे करें वैकल्पिक विषय- हिन्दी साहित्य की तैयारी

चूँकि सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में मेरा वैकल्पिक विषय 'हिन्दी भाषा का साहित्य' था, जिसमें मुझे सौभाग्य से 500 में से 313 अंक प्राप्त हुए थे, जो 2013 में बदले नए पैटर्न के बाद अभी तक प्राप्त जानकारी के मुताबिक़ सर्वाधिक हैं। ऐसे अभ्यर्थी, जिन्होंने सोच-विचारकर इसी विषय को मुख्य परीक्षा में चुना है, मैं उनके लिए इस विषय के बारे में कुछ विस्तार से प्रकाश डालने की कोशिश करूँगा।
क्यों चुनें -
- अंकदायी विषय
- हिन्दी माध्यम के लिए सुरक्षित विषय
- सहज, रुचिकर और आनंददायी विषय
- 3-4 माह में तैयारी संभव
- करेंट अफेयर्स से अपडेट करने की ज़रूरत नहीं 
- निश्चित और स्पष्ट पाठ्यक्रम
- लेखन कौशल का विकास।  निबंध, एथिक्स में मिल सकता है फायदा।
- विषय का बैकग्रॉउंड ज़रूरी नहीं। यद्यपि मैंने हिन्दी साहित्य में M.A., M.Phil. किया है पर अधिकांश सफल अभ्यर्थियों की पृष्ठभूमि साहित्य की नहीं होती। (एक उदाहरण- CSE 2014 में रैंक 49, पवन अग्रवाल ने इंग्लिश मीडियम से परीक्षा उत्तीर्ण की, पर वैकल्पिक विषय हिन्दी साहित्य था )
क्यों न चुनें -
- यदि हिन्दी भाषा को लिखने या पढ़ने में भी दिक्कत हो,
- विषय का दायरा व्यापक, पढ़ने को बहुत कुछ,
- भाषा-साहित्य बिल्कुल पसंद न हों।
- सामान्य अध्ययन में यह विषय मदद नहीं करता।
तैयारी कैसे करें-
हिन्दी साहित्य मेरा पसंदीदा विषय है। इसे पढ़कर मुझे अजीब सा सुकून मिलता है। सिविल सेवा परीक्षा के वैकल्पिक विषयों की सूची में भी हिन्दी साहित्य अभ्यर्थियों का एक पसंदीदा विषय है। हिंदी माध्यम के छात्रों का इस विषय की ओर सहज रुझान रहा है। इस विषय की लोकप्रियता का कारण इसका रुचिकर होने के साथ-साथ अंकदायी होना भी है। आइये, बात करते हैं हिन्दी साहित्य को वैकल्पिक विषय के रूप में लेने वालों के लिए, बेहतर प्रदर्शन के कुछ जरुरी बिन्दुओं की :
-पाठ्यक्रम में निर्धारित सभी पुस्तकों को पढ़ जरूर लें, ताकि व्याख्या करते समय सही सन्दर्भ लिख सकें।
-व्याख्या खंड में सही सन्दर्भ पहचानना बेहद ज़रूरी है। पद्य खंड में सन्दर्भ पहचानना आसान होता है और व्याख्या करना कठिन। जबकि गद्य खंड में सन्दर्भ पहचानना कठिन होता है और व्याख्या करना आसान।
 -पूरे पाठ्यक्रम को एक बार पढ़ जरूर लें ताकि सब लेखकों और उनकी निर्धारित रचनाओं  के बारे में आपको बेसिक जानकारी जरूर हो, ताकि मुश्किल वक़्त में उसका प्रयोग कर पाएं। अब नए पैटर्न में चयनात्मक अध्ययन से काम चलाना मुश्किल है। पर हाँ, हर खण्ड में कुछ अध्याय चुनकर उन्हें अधिक बेहतर ढंग से तैयार कर सकते हैं।
-चूँकि अब प्रश्नों की संख्या ज़्यादा होती है और शब्दसीमा कम, इसलिए पूरे पाठ्यक्रम की थोड़ी-थोड़ी जानकारी और समझ अवश्य रखें। हर टॉपिक को संक्षेप में तैयार कर लें।
पाठ्यक्रम- प्रश्नपत्र-1
खण्ड 'क' - हिन्दी भाषा और नागरी लिपि का इतिहास
खण्ड 'ख'- हिन्दी साहित्य का इतिहास
प्रश्नपत्र-2
खण्ड 'क'- पद्य साहित्य
खण्ड 'ख'- गद्य साहित्य
-प्रश्नपत्र-1 के खण्ड 'ख' (हिन्दी साहित्य का इतिहास) को ढंग से तैयार कर लें। यह प्रश्नपत्र-2 में भी काम आएगा। हिन्दी साहित्य का विकास किस तरह हुआ, इसे क्रमबद्ध तरीके से मोटे तौर पर समझ लें।
-विभिन्न लेखकों और कवियों के कथन और काव्य पंक्तियाँ दोनों प्रश्नपत्रों, विशेषकर द्वितीय प्रश्नपत्र में विशेष महत्त्व रखती हैं। उदाहरण देने से आपके कथन और तर्कों की पुष्टि हो जाती है। इसलिए प्रसंग के अनुरूप उदाहरण लिखने में हिचकिचाएं नहीं। पर ध्यान दें, उदाहरण प्रासंगिक और संगत लगने चाहिएं, ऊपर से थोपे हुए नहीं।
-आपने इन कोटेशन्स को जहां भी नोट किया है, (बेहतर होगा कि एक डायरी बना लें), वहां से इन्हें निरंतर दोहराते रहें। पर साथ ही हर पंक्ति के साथ उसका प्रसंग या प्रतिपाद्य जरूर लिख लें। मसलन, 'कबीर की भाषा' के बारे में लिखते हुए 'संस्किरत है कूप जल, भाखा बहता नीर' लिख सकते हैं। 'काहे री नलनी, तू कुम्हिलानी' से 'कबीर के दर्शन और रहस्यवाद' को जोड़ लें। 'किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत', 'सूर के वात्सल्य' का अच्छा उदाहरण है। 'समन्वय उनका करे समस्त, विजयिनी मानवता हो जाय', 'कामायनी के समरसता के दर्शन' को प्रतिपादित करती हैं।  
-भाषा खंड को लेकर अभ्यर्थियों में एक अजीब सा भय रहता है। दरअसल यह खंड कम मेहनत में अधिक अंक देता है। इसकी सभी यूनिट्स को संक्षेप में तैयार कर लें। मसलन पाली, प्राकृत और अपभ्रंश में से प्रत्येक की अगर आपको 6-7 विशेषतायें पता हैं तो इतना काफी है। राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा को ठीक से तैयार करना बेहतर विकल्प है।
-व्याकरणिक अशुद्धियों से बचने का अभ्यास।  सहज व सरल भाषा का प्रयोग। अभ्यास करना ज़रूरी, धीरे-धीरे लेखन कौशल विकसित होता जाएगा।
क्या पढ़ें और क्या नहीं-
-पाठ्यक्रम में निर्धारित सारी मूल टेक्स्ट बुक्स =,
- NCERT 11th class- साहित्य शास्त्र परिचय
- हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास- डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी,
- हिन्दी साहित्य का इतिहास- डॉ नगेन्द्र
-हिन्दी भाषा- डॉ हरदेव बाहरी,
- छायावाद- डॉ नामवर सिंह
-कबीर- हजारी प्रसाद द्विवेदी
-कविता के नए प्रतिमान- नामवर सिंह
-हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास- डॉ रामस्वरूप चतुर्वेदी
-किसी अच्छी कोचिंग के नोट्स देख लें।
-यदि रुचि हो तो एक साहित्यिक पत्रिका जैसे 'आजकल', या 'नया ज्ञानोदय' पढ़ सकते हैं। अच्छा लगेगा और साहित्य की नवीनतम प्रवृत्तियों के प्रति भी सहज हो पाएंगे।
उत्तर कैसे लिखें-
-समग्रता और संश्लिष्टता
-क्रमबद्ध और व्यवस्थित
-कथन की पुष्टि हेतु यथासम्भव उदाहरण देना न भूलें,
- अगर पूरी कोटेशन याद न आए, तो सिंगल इनवर्टिड कोमा लगाकर आधी या चौथाई कोटेशन भी लिख सकते हैं।
-पैराग्राफ बनाकर लिखें, बुलेट पॉइंट नहीं।
- साफ-सुथरा और व्याकरणिक दृष्टि से सही लिखने की कोशिश करें।
-यदि चाहें तो महत्वपूर्ण बातों को अंडरलाइन कर सकते हैं।
रिवीजन कैसे करें - 
-रिवीजन अनिवार्य
-पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद उसे एक-दो बार जरूर दोहरा लें,
-एक डायरी में यह नोट कर लें कि आपने पाठ्यक्रम का कौन सा हिस्सा कहां से पढ़ा है। दोहराते वक़्त काम आएगा।
-परीक्षा से एक दिन पहले दोहराने के लिए कुछ अति महत्वपूर्ण संक्षिप्त पॉइंट्स भी तैयार कर लें।
- फुर्सत में या मौका मिलने पर मूल टेक्स्ट बुक्स को यूं ही पढ़ते रहें।
-परीक्षा के पूर्व अनावश्यक विस्तार से बचते हुए पूरे पाठ्यक्रम को संक्षेप में दोहरा लें।
परीक्षा हॉल में कैसे अच्छा प्रदर्शन करें-
-
-कोशिश करें कि प्रश्नपत्र को क्रमवार हल करते चलें।  क्योंकि परीक्षक भी स्वाभाविक रूप से उसी क्रम में कॉपी जांचेंगे।
-हिन्दी के पेपर में जीएस की तरह वक़्त की उतनी कमी नहीं होती, अतः पूरा प्रश्नपत्र हल करने का प्रयास करें।
-यदि मैं अपनी बात करूँ, तो मुझे प्रथम प्रश्नपत्र में भाषा खंड और द्वितीय प्रश्नपत्र में काव्य खंड अधिक प्रिय हैं। और मैंने इन्हीं से अधिक प्रश्न हल किये थे। आप भी मन में विचार कर लें कि कौन से खण्डों से ज़्यादा प्रश्न हल करने हैं।
-हिंदी साहित्य के उत्तर पैराग्राफ में ही लिखें, बिन्दुवार नहीं।

-सहज और सरल भाषा का प्रयोग बेहतर है, पर ज़रूरत पड़ने पर साहित्यिक शब्दावली का प्रयोग करने में कतई न हिचकिचाएं।
------ निशान्त जैन 

अस्त-व्यस्त नहीं, व्यस्त और मस्त रहें...

अस्त-व्यस्त नहीं, व्यस्त और मस्त रहें...

एक हैं श्रीमान 'क'। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के प्रति पूर्ण समर्पित। निष्ठा और समर्पण में कोई कमी नहीं। सोने और खाने के लिए कुछ समय बमुश्किल निकालकर, बाक़ी समय बस पढ़ते हैं। इतना पढ़ते हैं कि अड़ोस-पड़ोस के साथी इनसे लगभग भयाक्रांत रहते हैं। लिखते भी ठीक-ठाक हैं और स्मरण शक्ति भी बढ़िया है। सिलेबस भी पूरा तैयार है। इनके रूम पर इतनी किताबें और नोट्स का अंबार है, कि आप देखने मात्र से ही तनाव में आ जाएँ।
पर आश्चर्यजनक रूप से पिछले काफ़ी समय से परीक्षाओं में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। नतीजा हर बार सिफ़र।
उनके क़रीबी दोस्त बताते हैं कि वे इतनी मेहनत के बावजूद अनियमित और बेतरतीब दिनचर्या के शिकार हैं और विशेषकर परीक्षा के दिनों बेहद तनाव और दुश्चिंता से ग्रस्त हो जाते हैं।

दूसरे हैं श्रीमान 'ख'। जीवन कुछ हद तक व्यवस्थित सा है इनका। अक्सर व्यस्त रहते हैं। पढ़ाई भी जमकर करते हैं और कभी-कभार मस्ती भी। दोस्तों के भी पसंदीदा साथी हैं श्री ख। टाइम मैनेजमेंट ऐसा कि थोड़ा-बहुत वक़्त अपनी रूचियों के लिए भी निकाल ही लेते हैं। जब भी आप इनसे मिलेंगे तो इनके चेहरे पर एक मंद मुस्कान तैरती हुई मिलेगी। परीक्षा के दिनों में अतिरिक्त तनाव इनके लिए अजीब सी बात है और ये जनाब अपने चिरपरिचित शांत स्वभाव को परीक्षाओं में भी क़ायम रखते हैं। इनके बारे में एक और दिलचस्प बात यह है कि जितना इनपुट ये देते हैं, उससे ज़्यादा इनका आउटपुट रहता है। ये महोदय श्रीमान क जितना तो नहीं पढ़ पाते, पर जितना पढ़ते हैं, व्यवस्थित और नियमित ढंग से, वो भी रिवीज़न के साथ।

प्रिय दोस्तों, हमारे आस-पास श्रीमान 'क' और श्रीमान 'ख' जैसे तमाम साथी मिल जाएँगे। हो सकता है कि आप में से भी कई साथियों के लक्षण श्रीमान 'क' या श्रीमान 'ख' से मिलते-जुलते हों। इसी बीच मैं आपसे एक सवाल भी पूछना चाहता हूँ, जिसका ईमानदार जवाब आपको ख़ुद को ही देना है।
क्या आपके साथ भी ऐसी ही समस्या है कि आप मेहनत तो ख़ूब करते हैं, पर नतीजे नहीं मिल पाते। तैयारी भरपूर है पर इतनी अव्यवस्थित है कि आपको ख़ुद नहीं मालूम कि मैंने फ़लाँ टॉपिक कितनी किताबों से या किन-किन स्त्रोतों से पढ़ा है? क्या आपको कभी-कभी ऐसा लगता है, मेरा अमुक साथी जो मुझसे कम पढ़ता था, वह परीक्षा में सफल कैसे हो गया? या मैंने जिसे पढ़ाया, वही मुझे पीछे छोड़कर ख़ुद चयनित हो गया? क्या आपको ऐसा लगता है कि जितनी पढ़ाई मैंने की, उसके अनुरूप मुझे कभी परिणाम मिला ही नहीं। या फिर यह महसूस हुआ हो कि मेरी तैयारी में ऐसी कौन सी कमी है कि सफलता मेरे पास आकर भी दूर छिटक जाती है?
अगर आपको ये सारे सवाल या इनमें से कुछ सवाल भी मथते हैं तो आपको निश्चित रूप से आत्ममंथन कर लेना चाहिए। हो सकता है कि आपकी स्थिति श्रीमान 'क' से मिलती-जुलती हो। हो सकता है कि आप अस्त-व्यस्त तरीक़े से तैयारी करते हों और अस्त-व्यस्त तरीक़े से ही उसे परीक्षा में लिखकर आते हों। 
साथियों, आप यह बात समझ रहे होंगे कि दरअसल हमें श्रीमान 'क' से श्रीमान 'ख' तक की यात्रा तय करनी है। सफलता की राह को जटिल न बनाकर उसे सरल और सहज बनाते हुए सफलता की सम्भावना को बढ़ाना है और आगे बढ़ते जाना है।
आपने समझा कि 'अस्त-व्यस्त' तरीक़े से पढ़ाई और तैयारी के क्या-क्या साइड इफ़ेक्ट होते है? जबकि हमारे ही बीच कुछ साथी व्यस्त और मस्त रहकर अपेक्षाकृत कम तैयारी के बावजूद बेहतर नतीजे हासिल कर लेते हैं।
आइए, चर्चा करते हैं कि ऐसा क्यों होता है। दरअसल 'व्यस्त' रहना एक बात है, और 'अस्त-व्यस्त' रहना दूसरी बात। सफल होने और साथ ही ख़ुश रहने के लिए, व्यस्त रहना निश्चय ही ज़रूरी है, पर अस्त-व्यस्त तरीक़े से व्यस्त रहना क़तई ज़रूरी नहीं है। इसके बजाय मस्त रहते हुए व्यस्त रहना कई गुना बेहतर है। मस्त और व्यस्त रहने का सीधा सा फ़ायदा यह होता है कि आप व्यर्थ के तनाव से बचे रहते हैं और परीक्षा में भी शांत और सहज मन से बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। 
आइए, जानें, 'व्यस्त और मस्त' रहने के फ़ायदे-
-आप अमूमन प्रसन्न रहते हैं और आपमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।
- आप जो भी पढ़ते हैं, उसे एंजॉय करते हैं और तनावपूर्ण समय में भी सहज रहते हैं।
- सहज और शांत रहने की इस आदत के चलते आप परीक्षा हॉल में भी आपका प्रदर्शन औसत से बेहतर रहता है, क्योंकि आप दिमाग पर अनावश्यक भार रखे बिना खुलकर लिख पाते हैं।
- साथ ही साथ आप परीक्षा के परिणाम को लेकर ज़्यादा चिंतित भी नहीं होते और हर परिस्थिति के लिए तैयार रहते हैं। एक कहावत भी है- 'Try for the best, prepare for the worst.'

दरअसल व्यस्त रहना एक नियामत की तरह है। और अगर मस्त रहकर व्यस्त रहा जाय, तो यह सोने पर सुहागा ही है। व्यस्त रहने से आपको एक संतुष्टि का भाव महसूस होता है और आप अपने दिन को जस्टीफ़ाई कर पाते हैं।
पर आख़िर ऐसे कौन से तरीक़े हैं, जिनसे हम अपनी आदत में कुछ बदलाव लाते हुए बिज़ी रहते हुए भी ख़ुश रह सकते हैं।
- दिनचर्या को नियमित करने की कोशिश करें। 'परफ़ेक्ट' दिनचर्या जैसी कोई चीज़ नहीं होती। जहाँ तक सम्भव हो, एक ठीक-ठाक दिनचर्या बनाकर उसका पालन करने की कोशिश करें।
- अस्त-व्यस्त और अव्यवस्थित रहने की आदत से धीरे-धीरे छुटकारा पाएँ। जैसे कि आप स्टडी का एक शेड्यूल बना लें, जिसमें पढ़ाई के साथ-साथ अभ्यास, रिवीज़न और लेखन का भी समुचित स्थान हो।
- अपने स्वत्व और सहजता को बनाए रखें। अपने शौक़ व रूचियों और फ़िटनेस व हाईजीन का भी ख़याल रखें। अपनी दिनचर्या में योग व प्राणायाम को शामिल करने का प्रयास करें।
- व्यस्त रहना आपको शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ बनाए रखता है। पर साथ ही प्रसन्नचित्त और मस्त रहकर पढ़ाई करने का अपना हो आनंद है।
- स्वयं ख़ुश रहें, तभी आप दूसरों को भी ख़ुश कर सकते हैं। प्रसन्नता संक्रामक होती है। भीतर से ख़ुश रहें और बाहर भी ख़ुश दिखें। 
शुभकामनाओं सहित-
निशान्त 
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं।)