Tuesday 25 April 2017

'क्यों अपनाएँ मध्यम मार्ग?'

'क्यों अपनाएँ मध्यम मार्ग?'


क्या कभी हमने यह भी सोचा है कि हम सिविल सेवा परीक्षा या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित क्यों होते हैं? क्यों हम दिन-रात एक कर, निरंतर कठिन परिश्रम कर परीक्षा में सफलता के लिए पूरा ज़ोर लगा देते हैं? क्यों हम चौतरफ़ा दबावों और तनावों के बीच तपकर इस कंटक पथ पर चलकर सब कुछ समर्पित कर देते हैं?
यद्यपि सबकी प्राथमिकतायें और उद्देश्य अलग-अलग हो सकते हैं, पर अगर कभी फ़ुर्सत में ठंडे दिमाग़ से इस सवाल का जवाब सोचें, तो मोटे तौर पर कुछ बातें सामने आती हैं, जैसे-
-एक बेहतर और सुखमय जीवन की कामना,
-जीवन में उत्कृष्टता के लिए कोशिश
- अच्छे और प्रतिष्ठित कैरियर की तलाश 
- माता-पिता/परिवार/ शिक्षकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का ख़्वाब
- अपने सपनों को साकार करने की इच्छा, आदि।

अपने इन सपनों को साकार करने के प्रयासों की राह बहुत कठिन नहीं है, परंतु इतनी सरल और एकरेखीय भी नहीं है।  जिस तरह ज़िन्दगी बहुपक्षीय और बहुआयामी है, उसी तरह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की प्रक्रिया भी ठीक-ठाक लम्बी और उलझाऊ सी है। मेरी व्यक्तिगत राय है कि इस उलझन, बोझ, ऊहापोह और तनाव से निपटने का शानदार और ज़बरदस्त रास्ता बुद्ध के 'मध्यम मार्ग' में छिपा है।
बौद्ध दर्शन के प्रमुख सिद्धांतों में से एक मध्यम मार्ग को पाली साहित्य में 'मज्झिमा परिपदा' कहा गया है, जिसे सामान्य तौर पर अंग्रेज़ी में 'Middle Path' या 'golden mean' भी कहा जाता है। बुद्ध ने अति 'कायक्लेश' और 'भोगवाद' के बीच का 'मध्यम मार्ग' सुझाया और स्वयं भी उसी पर आगे बढ़े। बुद्ध का यह मध्यम मार्ग का दर्शन भारतीय औपनिषदिक समावेशी (inclusive) और सहिष्णु  (tolerant) चिंतन प्रक्रिया के काफ़ी नज़दीक है।

 मध्यम मार्ग का यह सिद्धांत वर्धमान महावीर के 'अनेकांतवाद' व 'स्यादवाद' के भी काफ़ी नज़दीक है। अनेकांतवाद सिखाता है कि कोई भी कथन स्वयं में पूर्ण (absolute) नहीं है। किसी भी बात या धारणा को एक नहीं, बल्कि अनेक पहलुओं से समझा जा सकता है। हर बात को समझने के कई दृष्टिकोण या नज़रिए हो सकते हैं। सात अंधे जब एक हाथी को अलग-अलग अंगों पर स्पर्श करते हैं, तो उसकी आकृति को लेकर अपनी अलग-अलग धारणाएँ बनाते हैं। कोई हाथी की पूँछ को छूकर उसे 'झाड़ू' समझता है, तो कोई उसके कान छूकर उसे 'पंखा'। उन सातों दृष्टिबाधित व्यक्तियों का अपना-अपना सत्य है, जो उनके नज़रिए से भले ही ठीक हो, पर ज़ाहिर है कि यह सत्य अधूरा है। इसी लिए अंग्रेज़ी में एक कहावत भी है- 'Truth lies somewhere in between.'
आप पाएँगे कि सत्य देश-काल-समाज-परिस्थिति सापेक्ष भी हो सकता है। उदाहरण के तौर पर पूरब के नैतिकता के मानदंड पश्चिम के मानदंडों से काफ़ी भिन्नता रखते हैं। कहीं मृत्युदंड अवैध और अनैतिक भी है, तो कहीं न्यायसंगत और वैध; कहीं समलैंगिक विवाह क़ानूनन व नैतिक तौर पर स्वीकार्य है, तो कहीं इस बारे में सोचना भी अनैतिक माना जाता है। इस तरह के तमाम उदाहरण हमारे आस-पास दिखते हैं, जिनसे हम आसानी से समझ सकते हैं, कि कैसे अपने-अपने नज़रिए के आधार पर लोग अपने सच का संसार निर्मित करते जाते हैं।
अनेकांतवाद और मध्यम मार्ग की इन अवधारणाओं को संक्षेप में समझने के बाद अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं, कि सिविल सेवा परीक्षा या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं सहित ज़िंदगी के हर मोड़ पर, किस तरह ये दोनों परस्पर पूरक से दिखने वाले सिद्धांत आपकी मुश्किल राह को आसान और सहज बनाने में मदद करते हैं।
- मुख्य परीक्षा में निबंध या सामान्य अध्ययन के प्रश्नों के उत्तर लिखते वक़्त एक बड़ा कंफ्यूजन इस बात को लेकर रहता है कि विचारों का संतुलन कैसे बनाएँ। इसमें निस्सन्देह मध्यम मार्ग मदद करता है। 
- एक बेहतर निबंध तभी लिखा जा सकता है, जब उसमें उस विषय के सभी सम्भव पहलुओं और पक्ष-विपक्ष पर पर्याप्त प्रकाश डालते हुए, विचारों को व्यवस्थित ढंग से अभिव्यक्त किया गया हो। इसमें अनेकांतवाद और मध्यम मार्ग, दोनों काफ़ी सहायक साबित हो सकते हैं।
- सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के दौरान सीखने की प्रवृत्ति (learner's attitude) होना काफ़ी काम आता है। यदि आप अतियों (extremes) की ओर न झुककर मध्यम मार्ग के हिमायती हैं, तो आप नयी चीज़ें सीखने के प्रति तत्पर रहते हैं, और दूसरों के विचारों का भी सम्मान करना सीखते हैं। यूँ भी ऋग्वेद में लिखा है- 'आ नो भद्रा कृतवो यंतु विश्वतः' (विश्व भर से श्रेष्ठ विचार हमारी ओर आएँ।)
-मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में अनेक बार किसी टॉपिक का विश्लेषण करते वक़्त निष्कर्ष में कोई स्पष्ट मत व्यक्त करना होता है। उस विश्लेषण को श्रेय मिलता है, जिसमें टॉपिक के विविध पहलुओं को व्यवस्थित ढंग से विश्लेषित कर अंत में एक संतुलित राय व्यक्त की जाए। स्पष्ट है कि ये दोनों सिद्धांत इस संतुलित दृष्टिकोण के निर्माण में काफ़ी मदद करते हैं।
- तैयारी की लम्बी और उबाऊ प्रक्रिया में कई बार असफलता का सामना भी करना पड़ सकता है। छोटी-छोटी असफलताओं को सम्भालना और उनमें विचलित हुए बग़ैर स्थिर रहना आज के तनाव भरे दौर में थोड़ा मुश्किल है। तैयारी के दौरान रोज़मर्रा की दिनचर्या में भी समय-समय पर विभिन्न कारणों से तनाव, निराशा या कुंठा की स्थितियाँ पैदा होती रहती हैं। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। पर इन स्थितियों से निपटने में अनेकांतवाद और मध्यम मार्ग के साथ-साथ गीता का 'निष्काम कर्मयोग' भी काफ़ी सहायता करते हैं। नतीजों के प्रति आसक्त (attach) हुए बिना पूर्ण मनोयोग और पुरुषार्थ से काम करना, सिविल सेवा परीक्षा या किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए बेहद ज़रूरी और लगभग अनिवार्य सा ही है।
- परफ़ेक्शन की ज़िद और सब कुछ बेस्ट पाने की चाहत आज के दौर में युवाओं पर जुनून की हद तक सवार है। पर जब आप अनेकांतवाद की मदद से यह समझ पाते हैं, कि कुछ भी बेस्ट नहीं है, और कोई भी धारणा शत प्रतिशत सत्य नहीं है, तो आप ज़्यादा सहज होकर तैयारी कर पाते हैं।
- इंटरव्यू के दौरान आपकी विनम्रता और सहजता आपकी परफ़ोरमेंस पर काफ़ी सकारात्मक असर डालती है। जब आप दूसरों के विचारों और ज्ञान के अथाह भंडार का सम्मान करते हुए, आप ख़ूब पढ़ते-लिखते और समझते हैं, तो आपको ज्ञान की विराटता व ख़ुद की अल्पज्ञता का अहसास होता है। इसका असर यह होता है आप और विनम्र होते जाते हैं। किसी विद्वान ने कहा भी है- 'शिक्षा अपने अज्ञान की प्रगतिशील खोज है।' सुकरात जैसे दार्शनिक ने इसीलिए कहा था- 'मैं ज्ञानी इस अर्थ में हूँ कि मैं यह जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता।' 

सच तो यह है कि भारतीय दर्शन के ये तीनों सिद्धांत -निष्काम कर्मयोग, अनेकांतवाद और मध्यम मार्ग; सिविल सेवा परीक्षा सहित किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में ही नहीं, बल्कि ज़िंदगी के हर मोड़ पर आपको अधिक परिपक्व, सहज, संयत, सहिष्णु और सक्षम बनाते हैं। बशर्ते इनके सही अर्थ को समझकर, रोज़मर्रा के जीवन में इनका समावेश कर लिया जाए।
- निशान्त जैन 
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)